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परी कथा

उसी समय एक भयानक शोर-सा उठा, धरती मे कंपन सा महसूस होने लगा। उन्होंने देखा कि पन्द्रह-बीस फुट ऊंचे राक्षस जो बीस-पच्चीस की संख्या में थे, मदमस्त होकर शोर मचाते हुए चले आ रहे थे।

अब आगे...

नीलपरी तुरन्त ही राज और अर्जुन को लेकर पेड़ के एक झुरमुट के पीछे छिप गई। सभी राक्षस अपनी धुन मे मदमस्त जोर-जोर से पैर पटकते हुए आगे निकल गये।

उन राक्षसों के निकल जाने के बाद नीलपरी दोनों बच्चों के साथ पेड़ के पीछे से बाहर आ गई और तुरंत ही अपने देश की तरफ उड़ते हुए चल दी।

उसी समय राज की नजर जंगल के बीच एक टीले पर पड़ी। उसे देखकर राज उछल पड़ा और नील परी को सम्बोधित करते हुए बोला- "नील परी, उस टीले पर पर बैठा वो बौना-सा बूढ़ा कौन है? जो अपने आगे अलाव जलाये कुछ बड़बड़ाये जा रहा है।"

नीलपरी की नजर जैसे ही टीले पर बैठे बूढ़े पर पड़ी, नील परी चिहुक उठी। और मन ही मन खुद को कोसने लगी- "ये तो राक्षसों का गुरु युगांडा है। पता नही किस मुहुर्त मे इन बच्चो के लेकर सैर पर निकली थी। आज तो बहुत बुरी फसी।"

"बच्चों, जल्दी चलो कहीं उस बूढ़े बौने की नजर हम पर ना पड़ जाये, वरना हम लोग बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जायेंगे।" नील परी ने घबराते हुए बोला।

दोनों बच्चों के साथ नील परी और ऊची उड़ान भरने लगी। किन्तु उसी समय राक्षसों के धर्मगुरु युगांडा की नजर उन पर पड़ी ।

युगांडा ने नील परी को तुरन्त ही  पहचान लिया। आज युगांडा के लिए ये सुनहरा अवसर था। उसने अपने मन में कुछ बोला और अपनी बगल में रखी टोकरी से कुछ सामान निकालकर अपने सामने जल रहे अलाव रूपी भभकते हुए हवन कुण्ड मे डाल दिया।

उसी समय आग का एक भभका-सा उठा और आसमान मे जाकर नीलपरी, राज और अर्जुन के चारो तरफ एक घेरा सा बना दिया। नील परी वहीं आकाश में रुकी रह गई । नील परी ने अपना हाथ उठाना चाहा। मगर वह अपना हाथ तक नही हिला पा रही थी।

तभी नील परी का जादू टूट गया। राज और अर्जुन जमीन पर गिरने लगे। अचानक इस बदले घटनाक्रम के देखकर दोनो की चीख निकल गई। उन्हे लगा की अब उनका अन्तिम समय आ चुका है। इतनी ऊचाई से गिरने बाद वो तरबूज के जैसे फट जायेगें।

जमीन और उनके बीच अब महज कुछ पलो का ही फासला बाकी था। उसी समय वे दोनो हवा में ही लटक से गये। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उन्हे हवा मे ही थाम लिया है। फिर बड़े आराम से तीनों जमीन में आकर रुक गये।

जमीन पर कदम पड़ते ही सैकड़ो राक्षसों ने चारो तरफ से हू...हू...हू...हू... करते हुए राज, अर्जुन और नील परी को घे लिया।

राक्षसों के धर्मगुरु युगांडा ने नील परी की तरफ देखा और खतरनाक हसी का ठहाका लगाते हुए कहा- "तो तू है नील देश की शहजादी नील परी और परी रानी लाल परी की बेटी। आज तू मेरी कैंद मे आखिर फस ही गई। अब हम लोग लाल परी से अपनी वर्षों पुरानी हार का बदला लेंगे। और इस बार तुम्हे ना तो कोई देव ही बचा पायेगा और ना ही तुम्हारी वो मायावी शहजादी। हाहाहाहा..." फिर युगांडा ने राक्षसों की तरफ देखते हुए कहा- "इन तीनो को बंदी बनाकर कैदखाने में ले चलो।" राक्षस सैनिक उन तीनों को कैद करके कैदखाने की तरफ चल दिये, युगांडा सबसे आगे चल रहा था। आज युगांडा बहुत खुश था। उसने कभी सोचा नही था कि इतनी असानी से जीत उसके कदमो मे आ गिरेगी।

चलते हुए वो एक सुरंगनुमा गुफा मे पहुच जाते है। वहा चारो तरफ हड्डिया ही हड्डिया बिखरी पड़ी थी। सड़ी गली लाशो की असानीय दुर्गंध चारो तरफ फैली थी। अंदर पहुच कर उन तीनो को एक जगह खड़ा कर दिया गया। उसके बाद युगांडा ने अपने मन में कुछ मंत्र बुदबुदाने हुए ऊपर हाथ उठाकर जोर-जोर से हिलाने लगा।  तभी एक लोहे का जालीदार पिजरा उन तीनों के ऊपर आकर गिर जाता हैं।

युगांडा जोर-जोर से हसते हुए नील परी से कहता हैं- "ये दरवाजे जादुई हैं नील परी इन्हे तुम अपने जादू से तोड़ नहीं पाओगी। इसलिए बेवजह अपनी जादुई तक बर्बाद मत करना। अब जब तक मै चाहूगा तुम लोग मेरे कैदखाने में रहोगे।" इतना कहकर शैतानी हसी हसते हुए युगांडा राक्षसों के साथ वहां से बाहर निकल गया।


कैदखाने से बाहर आकर युगांडा सीधे अपने घर पहुचा और अपना ज्योतिष शास्त्र उठाया और बिना किसी पूर्व सूचना दिए राजमहल की तरफ चल दिया। 

युगांडा राजमहल पहुचकर सीधे राक्षसों के राजा कटंक के कक्ष मे जा पहुचा। कंटक अचानक गुरुदेव को सामने देखकर अचकचा जाता हैं। कंटक ने तुरंत ही युगांडा का अभिवादन किया और उन्हें बैठाया।

युगांडा के इस तरह आने से कंटक के मन मे हजारो बुरे ख्याल जन्म लेने लगे थे। युगाड़ा की सेवा-सत्कार करने के बाद कंटक ने कहा- "क्या बात है, गुरूदेव? आप बिना किसी पूर्व सूचना के ही अपनी तशरीफ रख दिए।"

युगांडा ने कहा- "तुम्हे तो याद ही होगा चेले, दशको पहले हम लोग परियो से हार गये थे?"

कंटक ने कहा- "हां, गुरूदेव वो दृश्य मुझे कैसे भूल सकता हैं, जब हमे और आपको लड़किया छेड़ने के आरोप मे लड़कियो वाला कपड़ा पहनाकर पूरे नगर मे घुमाया गया था।" इतना बोलते-बोलते कंटक भावुक होकर सिसकने लगता हैं।

युगांडा ने कहा- "अबे चुप कर गधा-घेचू, अब समय आ गया है कि हम अपने अपमान का बदला ले और परियों के देश नील देश पर आक्रमण कर दें।"

कंटक चौकते हुए बोला- आपको फिर से लड़कियो वाले कपड़े पहनने का शौक चढ़ रहा है क्या? आपको तो पता ही है हम लोग परियों से जीत नहीं सकते हैं।'

"अबे मूर्खो के सरदार ये मै भी जानता हू कि हम लोग परियो से कभी जीत नही सकते हैं।" फिर थोड़ा रुककर चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान लाते हुए युगांडा बोला- "मैंने नील देश की शहजादी नील परी को कैद कर लिया और अब नीलपरी मेरी कैद में हैं।"

यह सुनकर कंटक उछल पड़ा। जैसे उसे 440 बोल्ट का करेंट लग गया हों। कंटक खुश होते हुए बोला- "यह तो बहुत अच्छी खबर है गुरूदेव, अब हम राक्षस लोग परियों से उनका नील देश छीन लेंगे। उसके बाद परियो को दरबार मे नचायेंगे। अब नील देश पर हम राक्षसों का अधिकार हो जायेगा।


कहानी जारी रहेगी अगले भाग मे...

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22 Comments

Sushi saksena

10-Sep-2022 05:26 PM

Behtarin rachana

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Heartless Writer

10-Sep-2022 08:22 PM

थैक्स 😍

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Priyanka Rani

09-Sep-2022 09:45 PM

Nice post

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Heartless Writer

10-Sep-2022 08:23 PM

थैक्स 😍

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Kaushalya Rani

09-Sep-2022 09:15 PM

Nice post 👌

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Heartless Writer

10-Sep-2022 08:24 PM

थैक्स 😍

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